
वो सलीब - ऐ - सितम
ऐ सुनो मुसाफिर तुम इस तरह कहाँ यूँ चले जा रहे हो?
मकसद जीने का दिया तुम्हें जो, उसे यूँ ही क्यों भुला रहे हो?
ज़माने ने किया तुम्हें अजनबी क्योंकि तुम हो मेरी अमानत
ख़ुद मैंने पुकारा तुम्हें क्यों मुझे ही यूँ तुम रुला रहे हो?
इस जमाने की खातिर सहा मैंने सलिबेसितम
नज़रंदाज़ करके वो प्यार क्यों, अश्के लहू मिटा रहे हो?
याद करो वो दर्दे सफर वो दर्दे सितम कलवारी पर
मोहताज़ हूँ तुम्हारी मदद का, क्यूँ मुहं मोडे यूँ जा रहे हो?
अरसे गुज़रे देखता हूँ मुड़कर, खून बहाया जो सलीब पर
मेरी ओर न लौटकर तुम, गुनाह पे गुनाह किए जा रहे हो?
बस एक बार सुन लो पुकार, न जाए वो कुर्बानी बेकार
वो भूलकर यूँ क्यों, मुझे अब भी कुर्बान किए जा रहे हो?
बी जोंसन मरिया
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