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Sunday, 12 August 2012

एक बिटिया की कहानी


हेल्लो ! मेरा नाम अभी तक नहीं रखा गया है, इसलिए मैं अपने नाम से अपना परिचय नहीं करा सकती, लेकिन फिर भी आप मुझे अभागी अनाथ कह कर बुला सकते हैं. मेरी एक मजबूरी है, मैं मरना चाहती हूँ... क्यों?
जब मैं अपनी माँ के गर्भ में अस्तित्व में आयी, और मेरी माँ को पता चला कि उसके पेट में एक नयी जिंदगी पनप रही है, तो मेरी माँ को थोड़ी खुशी हुई.
जब मैं अपनी माँ के गर्भ में थी, तो मैं अपनी माँ के क्रिया कलापों पर बहुत ध्यान देती थी. उसकी पसंद-नापसंद मेरी अपनी थी. जो मेरी माँ को अच्छा लगता वह मुझे भी अच्छा लगता. जिससे मेरी माँ को घृणा होती उससे मुझे भी घृणा होती. मेरी माँ जब गाना गुनगुनाती तो मुझे बहुत अच्छा लगता. मैंने भी उस गाने को गर्भ में ही सुनकर सीख लिया है. जब भैया मुझे प्यार से सहलाते तो मुझे बहुत खुशी होती. लेकिन मुझे एक बात पर बड़ा अचरज होता था कि मेरे भैया से कहती कि उसके पेट में उसका छोटा भाई है. शायद माँ को या तो पता नहीं था कि मैं अपने भैया का भाई नहीं बल्कि उसकी नन्ही सी बहन हूँ, या फिर माँ ही जान बूझकर झूट बोलती थी.
मेरी माँ के साथ और भैया के साथ मेरा एक गहरा लगाव हो गया. जब भैया स्कुल चला जाता तो मैं माँ के पेट में बैचेन होकर भैया के आने का इंतज़ार करती और उस दिन की कल्पना करती जब मैं भी भैया के साथ स्कूल जाऊँगी. हम साथ-साथ खेलेंगे.
और वह दिन भी आ गया जब मुझे आरामदायक घर छोड़कर इस दुनिया में आना पड़ा. शुरू में मुझे अच्छा नहीं लगा. फिर मुझे जिज्ञासा हुई मेरी उस माँ का हँसता-खिलखिलाता चेहरा देखने जिसकी आवाज़ और मधुर गीत मैं सुन रही थी. उस प्यारे भैया का चेहरा देखने की तीव्र इच्छा हुई जिसके साथ खेलने, स्कूल जाने के सपने मैंने संजोये थे. नर्स ने मुझे साफ बिस्तर पर लिटा दिया है. माँ को पता चल गया है कि उसे बेटी हुई है. वह दुखी है. नर्स मुझे माँ के पास ले जाना चाहती है, लेकिन माँ मेरा चेहरा नहीं देखना चाहती थी, मुझे दूध पिलाना भी नहीं चाहती थी.
मैं अब पांच दिन की हूँ. आज रात को जब अचानक मेरी आँख खुलीं तो मैंने अपने आपको एक अनाथालय के दरवाजे पाया. मेरी माँ मुझे नहीं रखना चाहती थी, इसलिए उसने मुझे यहाँ छोड़ दिया. यहाँ न तो मेरा भैया है, और न मेरी प्यारी माँ की गोद. मैं फिर भी अपनी माँ को धन्यवाद देती हूँ कि उसने कम से कम नौ महीने अपने पेट में तो पलने दिया, और भले ही वो मुझे नहीं चाहती थी, और उसने मुझे इस अनाथालय मैं छोड़ दिया, कम से कम मुझे घूरे या कचरे के ढेर में तो नहीं फेंका, कम से कम मुझे जीवन तो दिया. धन्यवाद माँ ! मैं तेरा यह उपकार कभी नहीं भूलूँगी !!!