बेक़सी में बेगैरत
मुहब्बत ने जिसे मारा हो, उसे क्या कहोगे आप?नावाकिफ हैं मुहब्बत से, फिर दर्द का दर्द कैसे सहोगे आप?
जब से बेवफाई ने मारा है, दुश्मन ज़मान हो गया है,
हमसफ़र हुई तनहाइयाँ, आलमे बहार बेगाना हो गया है.
मिलने लगा अँधेरे में सुकून, दर्द बढ़ता है रौशनी में,
ना बाँटो गम हमारा कभी, ना धूप में ना चांदनी में.
यूं तो आसन है मुहब्बत करना, पर मुश्किल तो है निभाना
बेवकूफी है तमन्ना करना उसकी, जिसे नामुमकिन हो पाना.
बेकसी में बेगैरत हैं हम, वरना ये दर्दो गम कौन सहता?
हम थाम लेते दामन बेवफाई का, मुहब्बत को मुहब्बत कौन कहता?
- बी0 जोंसन मारिया
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