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Friday, 10 September 2010

Gazal

बेक़सी में बेगैरत
मुहब्बत ने जिसे मारा हो, उसे क्या कहोगे आप?
नावाकिफ हैं मुहब्बत से, फिर दर्द का दर्द कैसे सहोगे आप?

जब से बेवफाई ने मारा है, दुश्मन ज़मान हो गया है,
हमसफ़र हुई तनहाइयाँ, आलमे बहार  बेगाना  हो गया है.

मिलने लगा  अँधेरे में सुकून, दर्द बढ़ता है रौशनी  में,
ना बाँटो गम हमारा कभी, ना धूप में ना चांदनी में.

यूं  तो आसन  है मुहब्बत करना, पर मुश्किल तो  है निभाना
बेवकूफी है तमन्ना करना उसकी, जिसे नामुमकिन हो पाना.

बेकसी  में बेगैरत हैं हम, वरना ये दर्दो गम कौन सहता?
हम थाम लेते दामन बेवफाई का, मुहब्बत को मुहब्बत कौन कहता?

- बी0 जोंसन मारिया

Friday, 19 March 2010

gazal

दस्ताने बयाँ
(ग़ज़ल)


हमीं को हमारी दास्ताँ बयां करने को, न मजबूर कीजिये,
सलीके से तह करके हमने रखे हैं अपने गम,
बेतरतीब उन्हें आप ना हुजुर कीजिये.

नावाकिफ नहीं हैं हम ग़मों की उस महफ़िल से 
जो कमबख्त जज्बात बनकर जुड़े हैं हर दिल से,
सब्र कीजिये, मुट्ठी भर ख़ुशी पर  न गरूर कीजिये.

है दिल नहीं बुलंद इतना, के टकरा जाए फौलाद से
फिर भी कमबख्त को सुकून मिलता है ग़मगीन हालत से 
मगर हालातों से टकराने की तमन्ना न हुजुर कीजिये.

गर की गुस्ताखी आपने जो, हालातों से टकराने की,
ढहेगी ख्यालातों की ज़र्ज़र ईमारत, तमाम ज़माने की,
हाँ मिले कामयाबी तो जनाब, कोशिश ज़रूर कीजिये.

आएँगी मुश्किलें हज़ार, नामाकूल ज़माने को बदलने में, 
है रास्ता अगर नेक है तो, कामयाबी मिलेगी चलने में,
बेख़ौफ़ हो मुश्किलों के खौफ को काफूर कीजिये.

हमें ठुकराया  है ज़माने  ने, आवारा बन गए,
 घर  से बहार हैं, न कोई आशियाँ है न साए,
अपनाके हमें आप हमपे, सितम ना हुजुर कीजिये.

बी० जोंसन मारिया